साहिल से बीच समुंदर गहरा पानी घर मिट्टी घर से बाहर गहरा पानी ये असरार है ज़ाहिर उस के होने का मंज़र हो या पस-मंज़र गहरा पानी दिल को क्या देखते हो ऐ देखने वालो बाहर ख़ुश्की और अंदर गहरा पानी डूब के ही मैं शायद पार निकल जाऊँ मेरा क्या मेरे अंदर गहरा पानी वक़्त कब इक सी हालत रहने देता है हो जाता है रेत अक्सर गहरा पानी आसमान पर चाँद चमकता है ख़ाली नीचे है पोशीदा गौहर गहरा पानी बे-पायाँ करता हूँ 'तूर' अपने को मैं इक ख़ाली तश्त में भर कर गहरा पानी