साकिन है कोई और वतन और किसी का

By abdul-wahab-sukhanApril 24, 2024
साकिन है कोई और वतन और किसी का
ये रूह किसी की है बदन और किसी का
सुर्ख़ी है कहो की मिरे हर सर्व-ओ-समन में
पढ़ता है क़सीदा ये चमन और किसी का


तस्कीन का बा'इस है किसी और का पहलू
एहसास दिलाती है चुभन और किसी का
आईना समझते हैं तुझे सब ये अलग बात
है तुझ में मगर आईना-पन और किसी का


ये प्यार का जज़्बा तिरे कुछ काम तो आए
मेरा नहीं बनता है तो बन और किसी का
कहते हैं सुख़नवर मुझे निस्बत से तिरी सब
रहता है मिरे लब पे 'सुख़न' और किसी का


32471 viewsghazalHindi