सरा-ए-शर में रहना पड़ रहा है
By rahat-hasanNovember 13, 2020
सरा-ए-शर में रहना पड़ रहा है
क़ज़ा के डर में रहना पड़ रहा है
है मेरे क़त्ल के दरपय ख़मोशी
सदा के दर में रहना पड़ रहा है
मैं ख़ुद को दूसरों में देखता हूँ
सो चश्म-ए-तर में रहना पड़ रहा है
ख़याल-ओ-ख़्वाब हैं जिस के मुआविन
उसे बिस्तर में रहना पड़ रहा है
मैं हूँ जिस का दिल-ओ-जाँ से मुख़ालिफ़
उसी लश्कर में रहना पड़ रहा है
गुज़ारा फ़क़्र पर होता है फिर भी
पनाह-ए-ज़र में रहना पड़ रहा है
चला है हिजरतों का दौर जब से
ज़माने-भर में रहना पड़ रहा है
कोई तो लाश है मेरे हवाले
जो मुर्दा घर में रहना पड़ रहा है
हवा के पाँव तो बाहर हैं 'राहत'
मुझे चादर में रहना पड़ रहा है
क़ज़ा के डर में रहना पड़ रहा है
है मेरे क़त्ल के दरपय ख़मोशी
सदा के दर में रहना पड़ रहा है
मैं ख़ुद को दूसरों में देखता हूँ
सो चश्म-ए-तर में रहना पड़ रहा है
ख़याल-ओ-ख़्वाब हैं जिस के मुआविन
उसे बिस्तर में रहना पड़ रहा है
मैं हूँ जिस का दिल-ओ-जाँ से मुख़ालिफ़
उसी लश्कर में रहना पड़ रहा है
गुज़ारा फ़क़्र पर होता है फिर भी
पनाह-ए-ज़र में रहना पड़ रहा है
चला है हिजरतों का दौर जब से
ज़माने-भर में रहना पड़ रहा है
कोई तो लाश है मेरे हवाले
जो मुर्दा घर में रहना पड़ रहा है
हवा के पाँव तो बाहर हैं 'राहत'
मुझे चादर में रहना पड़ रहा है
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