सवार कोई पस-ए-पर्दा-ए-ग़ुबार न था

By abdullah-khalidAugust 19, 2023
सवार कोई पस-ए-पर्दा-ए-ग़ुबार न था
मगर तजस्सुस-ए-नज़्ज़ारा को क़रार न था
मैं इस क़दर भी तो औहाम का शिकार न था
ख़ुशा वो दिन कि तिरा लुत्फ़ बार बार न था


वो एक शख़्स जो रह रह के याद आता है
वफ़ा-शनास था लेकिन वफ़ा-शि'आर न था
ये हादिसा भी 'अजब है कि मेरे होने पर
सिवाए मेरे कोई और सोगवार न था


मिरे यक़ीन की ज़ंजीर कट गई होती
तिरे फ़रेब का ख़ंजर ही आब-दार न था
वो हादसे कि लहू-रंग हो गया एहसास
वो सानहे कि मुझे जिन का इंतिज़ार न था


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