मैं इक शाइ'र हूँ असरार-ए-हक़ीक़त खोल सकता हूँ

By seemab-batalviNovember 18, 2020
मैं इक शाइ'र हूँ असरार-ए-हक़ीक़त खोल सकता हूँ
निदा-ए-ग़ैब बन कर सब के दिल में बोल सकता हूँ
ख़ुदा ने जिस तरह खोला है मेरे दिल की आँखों को
यूँही मैं हर किसी के दिल की आँखें खोल सकता हूँ


वदीअ'त की है क़ुदरत ने वो मीज़ान-ए-नज़र मुझ को
कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त आलम को बख़ूबी तौल सकता हूँ
क़नाअ'त का ये आलम है कि मुश्त-ए-ख़ाक के बदले
जवाहर को भी मिट्टी में ख़ुशी से रोल सकता हूँ


22315 viewsghazalHindi