शाह-ए-ज़माँ ने भेज दिया रेशमी लिबास लेकिन फ़क़ीर का है वही सरमदी लिबास है जिस्म के सिवा भी ख़ुदा की दुकान में 'उर्यानियों को ढाँपने वाला कोई लिबास ख़ुश होने का ये स्वाँग बहुत देर हो चुका संदूक़ से निकालो मिरा मातमी लिबास सोचा तुम्हें गले से लगाया पहन लिया तुम हो कभी ख़याल कभी तन कभी लिबास इस बार रौशनी से है जंग आर-पार की शामों से जिस ने छीन लिए सुरमई लिबास जारी रहेगा ता-ब-अबद ये तवाफ़-ए-हुस्न आँखों में फिर रहा है तिरा मौसमी लिबास तक़रीर सुन के वो भी बजाते हैं तालियाँ पहना दिया गया है जिन्हें आख़िरी लिबास उस रोज़ झूम-झूम के नाचे हैं ज़िद में वो जिस दिन बदन पे देख लिया मातमी लिबास