शहर-ए-आफ़ात में हंगामा-ए-ज़िंदाँ है बहुत

By hamza-hashmi-sozOctober 31, 2020
शहर-ए-आफ़ात में हंगामा-ए-ज़िंदाँ है बहुत
इश्क़ पर अब भी मुसल्लत ग़म-ए-दौराँ है बहुत
अब किसी तौर मुझे छू न सकेगा तिरा ग़म
अब मिरे चारों तरफ़ हल्क़ा-ए-याराँ है बहुत


लोग होते चले जाते हैं निगाहों से परे
लेकिन इक ज़ेहन में वाज़ेह रुख़-ए-ताबाँ है बहुत
मुस्तनद कौन से पैराए हैं शे'रों के लिए
ये परखने के लिए मीर का दीवाँ है बहुत


प्यार तो प्यार कुदूरत भी कहाँ रखता है
मुझे भी इस की तरह शिकवा-ए-इंसाँ है बहुत
जुज़ मिरे छीन गया है दर-ओ-दीवार-ओ-फ़सील
'सोज़' इस बार तो कम-ज़र्फ़ी-ए-तूफ़ाँ है बहुत


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