शहर-ए-दिल बे शबाब है कम है
By abu-leveeza-aliSeptember 20, 2024
शहर-ए-दिल बे शबाब है कम है
जितनी हालत ख़राब है कम है
तुझ को सिंगार की ज़रूरत क्या
पर ज़िया रुख़ किताब है कम है
उस तजल्ली पे पर्दा रखने को
ये जो रुख़ पर हिजाब है कम है
तेरी दुनिया के जो दिवाने हैं
उन का ख़ाना-ख़राब है कम है
एक उम्मीद दिल की है मुश्किल
चश्म क़ैद-ए-सराब है कम है
ज़िंदगी तुझ पे क्यों मरा जाए
ये जो जीना 'अज़ाब है कम है
मय-कशी गर 'इलाज-ए-ग़म ठहरी
फिर तो जितनी शराब है कम है
इक तख़्ईल से ही इस दिल की
ये जो हालत ख़राब है कम है
ज़ब्त का ख़ुद पे अज्र है लेकिन
जितना उस का सवाब है कम है
कर दो मसला हमारे लाशे का
गर ये हुक्म-ए-जनाब है कम है
शहर की तीरगी मिटाने को
हाथ में आफ़्ताब है कम है
जितनी हालत ख़राब है कम है
तुझ को सिंगार की ज़रूरत क्या
पर ज़िया रुख़ किताब है कम है
उस तजल्ली पे पर्दा रखने को
ये जो रुख़ पर हिजाब है कम है
तेरी दुनिया के जो दिवाने हैं
उन का ख़ाना-ख़राब है कम है
एक उम्मीद दिल की है मुश्किल
चश्म क़ैद-ए-सराब है कम है
ज़िंदगी तुझ पे क्यों मरा जाए
ये जो जीना 'अज़ाब है कम है
मय-कशी गर 'इलाज-ए-ग़म ठहरी
फिर तो जितनी शराब है कम है
इक तख़्ईल से ही इस दिल की
ये जो हालत ख़राब है कम है
ज़ब्त का ख़ुद पे अज्र है लेकिन
जितना उस का सवाब है कम है
कर दो मसला हमारे लाशे का
गर ये हुक्म-ए-जनाब है कम है
शहर की तीरगी मिटाने को
हाथ में आफ़्ताब है कम है
61369 viewsghazal • Hindi