शैख़-ओ-वाइज़ को ख़ुदारा हम-नशीं मत कीजिए

By ali-minaiJune 2, 2024
शैख़-ओ-वाइज़ को ख़ुदारा हम-नशीं मत कीजिए
काम जो शायान-ए-अहल-ए-दिल नहीं मत कीजिए
देखिए बस ये कि इज़्न-ए-चश्म-ए-जानाना है क्या
'इश्क़ है तो इम्तियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-दीं मत कीजिए


डाल दें जो दिल के दरवाज़ों पे बे-मेहरी के क़ुफ़्ल
जी में ऐसी आरज़ूओं को मकीं मत कीजिए
ज़ेहन में ज़ौक़-ए-गुमाँ की भी न गुंजाइश रहे
इस क़दर तौहीन-ए-आदाब-ए-यक़ीं मत कीजिए


शौक़ से हो लीजिए अहल-ए-जुनूँ के साथ साथ
हाँ मगर फिर फ़िक्र-ए-जेब-ओ-आस्तीं मत कीजिए
है लगन तो कीजिए सहरा-नवर्दी मिस्ल-ए-क़ैस
सिर्फ़ ज़िक्र-ए-लैला-ए-महमिल-नशीं मत कीजिए


दश्त में खो जाइए जंगल में जा बसिये मगर
रूह को बहर-ए-ख़ुदा उज़्लत-गुज़ीं मत कीजिए
मुस्कुरा कर टाल दीजे दाद-ख़्वाह-ए-शौक़ को
हाँ अगर मुमकिन नहीं है तो नहीं मत कीजिए


लुत्फ़ का तालिब है माल-ओ-ज़र का सौदाई नहीं
अपने साइल पर निगाह-ए-ख़श्म-गीं मत कीजिए
'इश्क़ के बारे में ना-महरम जो कहते हैं कहीं
ख़ंदा-पेशानी से सुन लीजे यक़ीं मत कीजिए


21938 viewsghazalHindi