सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे By Ghazal << सफ़र-ब-ख़ैर प रख़्त-ए-सफ़... जंग जारी है ख़ानदानों में >> सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे जाएँगे जहाँ तक हम रस्ते नहीं जाएँगे गो दश्त-नवर्दी को हम सैर समझते हैं लौटेंगे तो चेहरे भी देखे नहीं जाएँगे सब रेत की दीवारें गिर जाएँगी लम्हों में लेकिन मिरे दरिया तो रोके नहीं जाएँगे Share on: