शायद मुझ से जान छुड़ाया करता था
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
शायद मुझ से जान छुड़ाया करता था
घर ख़ुद को वीरान बताया करता था
रिश्ते में इक मोड़ नहीं है दूर तलक
पहले इक दोराहा आया करता था
आसानी से हम भी सब्ज़ न होते थे
वो भी अपनी धूप बचाया करता था
चाँद हमें ले जाता था मदहोशी तक
सुब्ह का तारा होश में लाया करता था
ख़ाली हाथ उतरता था दूकानों से
आधे-पौने दाम लगाया करता था
मुँह पर उस से करता था इक़रार की ज़िद
वापस आ कर शुक्र मनाया करता था
घर ख़ुद को वीरान बताया करता था
रिश्ते में इक मोड़ नहीं है दूर तलक
पहले इक दोराहा आया करता था
आसानी से हम भी सब्ज़ न होते थे
वो भी अपनी धूप बचाया करता था
चाँद हमें ले जाता था मदहोशी तक
सुब्ह का तारा होश में लाया करता था
ख़ाली हाथ उतरता था दूकानों से
आधे-पौने दाम लगाया करता था
मुँह पर उस से करता था इक़रार की ज़िद
वापस आ कर शुक्र मनाया करता था
71952 viewsghazal • Hindi