शायद वो पढ़ सकेंगे न लिक्खा हुआ तमाम

By afsar-saleem-afsarMay 22, 2024
शायद वो पढ़ सकेंगे न लिक्खा हुआ तमाम
ख़त मेरा आँसुओं में है भीगा हुआ तमाम
रूदाद-ए-दर्द-ए-इश्क़ सुनाने चला था मैं
तुम से मिली निगाह तो क़िस्सा हुआ तमाम


दिल मेरा हसरतों की है दुनिया लिए हुए
आँखों में सैल-ए-अश्क है ठहरा हुआ तमाम
ऊँची 'इमारतें हैं मगर पस्ता-क़द हैं लोग
ये तेरा शहर मेरा है देखा हुआ तमाम


तेवर कुछ अब के और हैं फ़स्ल-ए-बहार के
ग़ुंचा कोई खिला भी तो बिखरा हुआ तमाम
अब ये चमन भी दोस्तो कुछ ग़ैर सा लगे
हर चंद अपने ख़ूँ से है सींचा हुआ तमाम


इन मह-रुख़ों के 'इश्क़ में 'अफ़सर' मिरा कलाम
आता है बाम-ए-अर्श से निखरा हुआ तमाम
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