शीश-महल में दो पल को मेहमान हुए थे हम
By rahat-hasanNovember 13, 2020
शीश-महल में दो पल को मेहमान हुए थे हम
आईने में अब तक अपना चेहरा ढूँडते हैं
नई इमारत के साए में कैसा है ये ढेर
लोग पुराने इस में अपनी दुनिया ढूँडते हैं
प्यास कहाँ लगती है इस तूफ़ानी मौसम में
फिर भी जंगल में सब आहू दरिया ढूँडते हैं
बस्ती ख़ुद हो जाती है वीराने में तब्दील
जोश-ए-जुनूँ में दीवाने कब सहरा ढूँडते हैं
यूँ भी तो ख़ुद से ही बातें करनी हैं दिन-रात
हम भी कोई 'राहत' अपने जैसा ढूँडते हैं
आईने में अब तक अपना चेहरा ढूँडते हैं
नई इमारत के साए में कैसा है ये ढेर
लोग पुराने इस में अपनी दुनिया ढूँडते हैं
प्यास कहाँ लगती है इस तूफ़ानी मौसम में
फिर भी जंगल में सब आहू दरिया ढूँडते हैं
बस्ती ख़ुद हो जाती है वीराने में तब्दील
जोश-ए-जुनूँ में दीवाने कब सहरा ढूँडते हैं
यूँ भी तो ख़ुद से ही बातें करनी हैं दिन-रात
हम भी कोई 'राहत' अपने जैसा ढूँडते हैं
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