शुमार लम्हों का सदियों में कर रहा हूँ मैं अजीब वक़्त से यारो गुज़र रहा हूँ मैं ये सारा फ़ैज़ उसी आतिश-ए-दरूँ का है हुआ है कितना अंधेरा निखर रहा हूँ मैं नज़र नज़र में हिकायत मिरे जुनूँ की है सहीफ़ा बन के दिलों में उतर रहा हूँ मैं मुझे मिटा न सकोगे हज़ार कोशिश से जहाँ डुबोया वहाँ से उभर रहा हूँ मैं