सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया

By abdul-ahad-saazApril 22, 2024
सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया
जब भी आईना देखा ख़ुद को दूसरा पाया
होंट पर दिया रखना दिल-जलों की शोख़ी है
वर्ना इस अँधेरे में कौन मुस्कुरा पाया


बोल थे दिवानों के जिन से होश वालों ने
सोच के धुँदलकों में अपना रास्ता पाया
एहतिमाम दस्तक का अपनी वज़' थी वर्ना
हम ने दर रसाई का बार-हा खुला पाया


फ़लसफ़ों के धागों से खींच कर सिरा दिल का
वहम से हक़ीक़त तक हम ने सिलसिला पाया
'उम्र या ज़माने का खेल है बहाने का
सब ने माजरा देखा किस ने मुद्द'आ पाया


शायरी तलब अपनी शायरी 'अता उस की
हौसले से कम माँगा ज़र्फ़ से सिवा पाया
'साज़' जब खुला हम पर शे'र कोई 'ग़ालिब' का
हम ने गोया बातिन का इक सुराग़ सा पाया


43503 viewsghazalHindi