सुनो दरिया की दुहाई साहब प्यास मिलने नहीं आई साहब याद करती है महकती सरसों राह तकती है फुलाई साहब मेरे हाथों में क़लम था लेकिन मैं ने तलवार उठाई साहब मुझ पे पथराव किया फूलों ने चोट ख़ुश्बू ने लगाई साहब मेरे होंटों से छुड़ा कर दामन प्यास दरिया में नहाई साहब