सुर्ख़-रूई तो दे रू-सियाही न दे
By hassaan-arfiOctober 31, 2020
सुर्ख़-रूई तो दे रू-सियाही न दे
मेरे अल्लाह अहद-ए-तबाही न दे
कर दे आँखों को नूर-ए-बसीरत अता
कम-निगाही न दे कम-निगाही न दे
दिल न फ़ख़्र-ओ-तकब्बुर से आलूदा हो
ताज-ए-शाही न दे तख्त-ए-शाही न दे
दे ख़ुलूस-ओ-वफ़ा का जो हो आइना
बुग़्ज़-ओ-कीना भरा दिल इलाही न दे
दूर नज़रों से है साहिल-ए-मुद्दआ'
कश्ती-ए-जाँ को सैल-ए-तबाही न दे
मैं ने क़ारूँ की दौलत न माँगी कभी
इतनी ग़ुर्बत भी लेकिन इलाही न दे
गर तू 'हस्सान' चाहे रज़ा-ए-ख़ुदा
दुश्मनों को भी रंज-ओ-तबाही न दे
मेरे अल्लाह अहद-ए-तबाही न दे
कर दे आँखों को नूर-ए-बसीरत अता
कम-निगाही न दे कम-निगाही न दे
दिल न फ़ख़्र-ओ-तकब्बुर से आलूदा हो
ताज-ए-शाही न दे तख्त-ए-शाही न दे
दे ख़ुलूस-ओ-वफ़ा का जो हो आइना
बुग़्ज़-ओ-कीना भरा दिल इलाही न दे
दूर नज़रों से है साहिल-ए-मुद्दआ'
कश्ती-ए-जाँ को सैल-ए-तबाही न दे
मैं ने क़ारूँ की दौलत न माँगी कभी
इतनी ग़ुर्बत भी लेकिन इलाही न दे
गर तू 'हस्सान' चाहे रज़ा-ए-ख़ुदा
दुश्मनों को भी रंज-ओ-तबाही न दे
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