तहरीर हुआ मैं कभी तक़रीर हुआ मैं हर सिंफ़ में इक शख़्स की तफ़्सीर हुआ मैं इबलीस ने सज्दा न किया ज़ो'म में उस के इक क़स्र तकब्बुर का जो ता'मीर हुआ मैं अल्लह रे मिरी शिद्दत-ए-एहसास का आलम मुरझाई कली कोई तो दिल-गीर हुआ मैं इस अह्द में ये सोच भी है जुर्म के मानिंद हक़-गोई पे क्यों बाइ'स-ए-ताज़ीर हुआ मैं पूछो न मिरा हाल मिरा हाल कहाँ है मुद्दत हुई इक शख़्स की तस्वीर हुआ मैं सब खुल गई किरदार की गुफ़्तार की ख़ूबी अख़बार के कॉलम में जो तश्हीर हुआ मैं जिस दिन से कि इक शख़्स ने फेरी हैं निगाहें रंज-ओ-ग़म-ओ-आलाम की जागीर हुआ मैं इस वर्ता-ए-हैरत में ज़माने से मैं गुम हूँ किस दर्द का रिश्ता था कि ज़ंजीर हुआ मैं