तमाम रात पड़ी थी कि दिन निकल आया

By krishna-kumar-toorNovember 4, 2020
तमाम रात पड़ी थी कि दिन निकल आया
अभी तो आँख लगी थी कि दिन निकल आया
यक़ीं हो पुख़्ता तो फिर शब बदल भी सकती है
ये बात उस ने कही थी कि दिन निकल आया


ये मोजज़ा भी हमीं पर तमाम होना था
वो बस ज़रा सा हँसी थी कि दिन निकल आया
मैं दिन निकलने का वैसे भी मुंतज़िर था बहुत
ये जान ख़्वाब हुई थी कि दिन निकल आया


सहर से पहले भला दिन कहाँ निकलता है
ज़रा सी बात बनी थी कि दिन निकल आया
ज़रा सा दर्द हुआ था कि दिल चमक उट्ठा
ज़रा सी सुब्ह हुई थी कि दिन निकल आया


करें जो ग़ौर यही है निज़ाम-ए-क़ुदरत 'तूर'
ये रात ख़त्म हुई थी कि दिन निकल आया
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