तमाम रिश्तों को बे-कुदूरत बना दिया है हमें मोहब्बत ने ख़ूबसूरत बना दिया है वो आदतन बे-नियाज़ लड़की थी जिस ने ख़ुद को हमारी ख़ातिर वफ़ा की मूरत बना दिया है मैं तेरे बिन ज़िंदगी गुज़ारूँ तो ख़ुद को हारूँ कि तू ने ख़ुद को मिरी ज़रूरत बना दिया है तुम्हारी ख़ातिर लिखी हुई अव्वलीं ग़ज़ल को किताब-ए-इम्काँ की पहली सूरत बना दिया है पुराने वा'दों की धज्जियों को मिला के 'यावर' मिलन का हम ने शगुन महूरत बना दिया है