तन्हाई से है सोहबत दिन रात जुदाई में
By joshish-azimabadiFebruary 4, 2025
तन्हाई से है सोहबत दिन रात जुदाई में
क्या ख़ूब गुज़रती है औक़ात जुदाई में
रुख़्सत हो चला था तब दामन न तिरा थामा
अफ़्सोस कि मलते हैं अब हाथ जुदाई में
क्या ज़िक्र है आँसू का ज़ालिम मिरी आँखों से
ख़ूँ-नाब ही टपके है यक ज़ात जुदाई में
जब वस्ल था उन रोज़ों यक दिल ही पे आफ़त थी
अब जान का है सौदा हैहात जुदाई में
ये नाला-ओ-ज़ारी ये ख़स्तगी ओ ख़्वारी
जीधर को चलूँ 'जोशिश' हैं सात जुदाई में
क्या ख़ूब गुज़रती है औक़ात जुदाई में
रुख़्सत हो चला था तब दामन न तिरा थामा
अफ़्सोस कि मलते हैं अब हाथ जुदाई में
क्या ज़िक्र है आँसू का ज़ालिम मिरी आँखों से
ख़ूँ-नाब ही टपके है यक ज़ात जुदाई में
जब वस्ल था उन रोज़ों यक दिल ही पे आफ़त थी
अब जान का है सौदा हैहात जुदाई में
ये नाला-ओ-ज़ारी ये ख़स्तगी ओ ख़्वारी
जीधर को चलूँ 'जोशिश' हैं सात जुदाई में
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