तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का
By rajab-ali-beg-suroorNovember 13, 2020
तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का
जा-ब-जा शहर में चर्चा हुआ रुस्वाई का
ग़ैर दाग़-ए-दिल-ए-सद-चाक न मोनिस न रफ़ीक़
ज़ोर आलम पे है आलम मिरी तन्हाई का
पहरों ही अपने तईं आप हूँ भूला रहता
ध्यान आता है जब अपने मुझे हरजाई का
ज़लज़ला गोर में मजनूँ की पड़ा रहता है
अपना ये शोर है अब बादिया-पैमाई का
जल्वा उस का है हर इक घर में बसान-ए-ख़ुर्शीद
फ़र्क़ है अपनी फ़क़त आह ये बीनाई का
कलमा-ए-हक़ भी दम-ए-नज़अ न निकला मुँह से
शैख़ को ध्यान था ऐसा बुत-ए-तरसाई का
कशिश-ए-नाला उसे कहते हैं अब वो जो 'सुरूर'
महव-ए-नज़्ज़ारा हुआ अपने तमाशाई का
जा-ब-जा शहर में चर्चा हुआ रुस्वाई का
ग़ैर दाग़-ए-दिल-ए-सद-चाक न मोनिस न रफ़ीक़
ज़ोर आलम पे है आलम मिरी तन्हाई का
पहरों ही अपने तईं आप हूँ भूला रहता
ध्यान आता है जब अपने मुझे हरजाई का
ज़लज़ला गोर में मजनूँ की पड़ा रहता है
अपना ये शोर है अब बादिया-पैमाई का
जल्वा उस का है हर इक घर में बसान-ए-ख़ुर्शीद
फ़र्क़ है अपनी फ़क़त आह ये बीनाई का
कलमा-ए-हक़ भी दम-ए-नज़अ न निकला मुँह से
शैख़ को ध्यान था ऐसा बुत-ए-तरसाई का
कशिश-ए-नाला उसे कहते हैं अब वो जो 'सुरूर'
महव-ए-नज़्ज़ारा हुआ अपने तमाशाई का
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