तर्क-ए-उल्फ़त तो इक बहाना था

By mona-shahabMarch 4, 2021
तर्क-ए-उल्फ़त तो इक बहाना था
वो गया ख़ैर उस को जाना था
हम भी रस्ते में थक गए थे बहुत
उस को भी साथ कब निभाना था


रुख़ पे ताज़ा गुलाब क्या खिलते
ज़र्द पत्तों का वो ज़माना था
नाम लिक्खा था जो हथेली पर
कितना मुश्किल उसे मिटाना था


तुम ने शो'ला बना दिया मुझ को
क्या मिरा ज़र्फ़ आज़माना था
दिल के लुटने पे शोर क्या करना
कौन सा क़ीमती ख़ज़ाना था


42745 viewsghazalHindi