तेरे बदन के लम्स का मंज़र बिखर गया
By shamim-danishFebruary 29, 2024
तेरे बदन के लम्स का मंज़र बिखर गया
टूटी जो नींद ख़्वाब का पैकर बिखर गया
तेरे बग़ैर ला न सका धड़कनों की ताब
वो दिल जो टूट कर मिरे अंदर बिखर गया
उस पैकर-ए-जमाल ने डाले थे सिर्फ़ पाँव
दरिया में रौशनी का समुंदर बिखर गया
आँधी तिरा ग़ुरूर तो क़ाएम रहा मगर
चिड़ियों का इक जहान ज़मीं पर बिखर गया
यूँ मुंतशिर हुआ है मिरी ज़िंदगी का ख़्वाब
जैसे मिरे वजूद का महवर बिखर गया
ऐसा लगा कि सारा जहाँ जीत लेगा वो
आई जो धूप मोम का लश्कर बिखर गया
टूटी जो नींद ख़्वाब का पैकर बिखर गया
तेरे बग़ैर ला न सका धड़कनों की ताब
वो दिल जो टूट कर मिरे अंदर बिखर गया
उस पैकर-ए-जमाल ने डाले थे सिर्फ़ पाँव
दरिया में रौशनी का समुंदर बिखर गया
आँधी तिरा ग़ुरूर तो क़ाएम रहा मगर
चिड़ियों का इक जहान ज़मीं पर बिखर गया
यूँ मुंतशिर हुआ है मिरी ज़िंदगी का ख़्वाब
जैसे मिरे वजूद का महवर बिखर गया
ऐसा लगा कि सारा जहाँ जीत लेगा वो
आई जो धूप मोम का लश्कर बिखर गया
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