तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था
By aitbar-sajidMay 29, 2024
तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था
यही 'उम्र थी मिरे हम-नशीं कि किसी से मुझ को भी प्यार था
मैं समझ रहा हूँ तिरी कसक तिरा मेरा दर्द है मुश्तरक
इसी ग़म का तू भी असीर है इसी दुख का मैं भी शिकार था
फ़क़त एक धुन थी कि रात-दिन इसी ख़्वाब-ज़ार में गुम रहें
वो सुरूर ऐसा सुरूर था वो ख़ुमार ऐसा ख़ुमार था
कभी लम्हा-भर की भी गुफ़्तुगू मिरी उस के साथ न हो सकी
मुझे फ़ुर्सतें नहीं मिल सकीं वो हवा के रथ पे सवार था
हम 'अजीब तर्ज़ के लोग थे कि हमारे और ही रोग थे
मैं ख़िज़ाँ में उस का था मुंतज़िर उसे इंतिज़ार-ए-बहार था
उसे पढ़ के तुम न समझ सके कि मिरी किताब के रूप में
कोई क़र्ज़ था कई साल का कई रत-जगों का उधार था
यही 'उम्र थी मिरे हम-नशीं कि किसी से मुझ को भी प्यार था
मैं समझ रहा हूँ तिरी कसक तिरा मेरा दर्द है मुश्तरक
इसी ग़म का तू भी असीर है इसी दुख का मैं भी शिकार था
फ़क़त एक धुन थी कि रात-दिन इसी ख़्वाब-ज़ार में गुम रहें
वो सुरूर ऐसा सुरूर था वो ख़ुमार ऐसा ख़ुमार था
कभी लम्हा-भर की भी गुफ़्तुगू मिरी उस के साथ न हो सकी
मुझे फ़ुर्सतें नहीं मिल सकीं वो हवा के रथ पे सवार था
हम 'अजीब तर्ज़ के लोग थे कि हमारे और ही रोग थे
मैं ख़िज़ाँ में उस का था मुंतज़िर उसे इंतिज़ार-ए-बहार था
उसे पढ़ के तुम न समझ सके कि मिरी किताब के रूप में
कोई क़र्ज़ था कई साल का कई रत-जगों का उधार था
40913 viewsghazal • Hindi