थकन की बर्फ़ जमी जिस्म के अलाव में

By abid-razaFebruary 17, 2025
थकन की बर्फ़ जमी जिस्म के अलाव में
लहू भी सर्द हुआ आख़िरी पड़ाव में
सिरात-ए-मर्ग पे पत्थर की एक रक़्क़ासा
खड़ी है सीना-सिपर वक़्त के बहाव में


पलट के आया किसी जल-परी से मिलने को
हमारे साथ समंदर हमारी नाव में
बदन की आग तो बुझने को है मगर अब भी
तमाम रात सुलगता है दर्द घाव में


गुज़ारी सुब्ह-ए-अज़ल ने'मतों की गिनती में
अबद की शाम फ़रिश्तों से भाव-ताव में
कहीं तो हाथ से छुटेगी जा के 'उम्र की डोर
कहाँ तलक ये खिंचे साँस के तनाव में


अब और कैसी दु'आओं की बारिशें मौला
मिरा मकान है सैलाब के कटाव में
82634 viewsghazalHindi