तिरे फ़िराक़ में जब भी बहार गुज़री है
By dr.-nareshOctober 29, 2020
तिरे फ़िराक़ में जब भी बहार गुज़री है
हमें रुला के लहू बार बार गुज़री है
पनाह ख़ुदा की हसीनों की बद-मिज़ाजी से
मिरी दुआ भी उन्हें नागवार गुज़री है
तमाम रात सितारों के साथ रोया हूँ
न पूछ कैसे शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तिरा नसीब अगर तू ने पी नहीं ज़ाहिद
बहार वर्ना बड़ी पुर-बहार गुज़री है
हम अपने दर्द को रोएँ तो किस लिए आख़िर
शब-ए-फ़िराक़ किसे साज़गार गुज़री है
किसी की याद में हम को 'नरेश' तड़पा कर
उठा के हश्र नसीम-ए-बहार गुज़री है
हमें रुला के लहू बार बार गुज़री है
पनाह ख़ुदा की हसीनों की बद-मिज़ाजी से
मिरी दुआ भी उन्हें नागवार गुज़री है
तमाम रात सितारों के साथ रोया हूँ
न पूछ कैसे शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तिरा नसीब अगर तू ने पी नहीं ज़ाहिद
बहार वर्ना बड़ी पुर-बहार गुज़री है
हम अपने दर्द को रोएँ तो किस लिए आख़िर
शब-ए-फ़िराक़ किसे साज़गार गुज़री है
किसी की याद में हम को 'नरेश' तड़पा कर
उठा के हश्र नसीम-ए-बहार गुज़री है
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