तू अपने वस्ल के वा'दे से जब मुकरने लगा तो मैं ने देखा तिरा पैरहन बिखरने लगा जब आधी रात को सारी शराब ख़त्म हुई वो अपनी आँख से मेरा पियाला भरने लगा उसे ग़ज़ल से किसी तौर कम नहीं चाहा सो वो भी क़ाफ़िए की तरह तंग करने लगा हवा-ए-सुब्ह ने हम दोनों को उदास किया 'जमाल' पेड़ से इक साया जब उतरने लगा