तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है इश्क़ की आतिश बला है उस की सोज़िश और है क्यूँ न वहशत में चुभे हर मू ब-शक्ल-ए-नीश-तेज़ ख़ार-ए-ग़म की तेरे दीवाने की काविश और है मुतरिबो बा-साज़ आओ तुम हमारी बज़्म में साज़-ओ-सामाँ से तुम्हारी इतनी साज़िश और है थूकता भी दुख़्तर-ए-रज़ पर नहीं मस्त-ए-अलस्त जो कि है उस फ़ाहिशा पर ग़श वो फ़ाहिश और है ताब क्या हम-ताब होवे उस से ख़ुर्शीद-ए-फ़लक आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-दिल की अपने ताबिश और है सब मिटा दें दिल से हैं जितनी कि उस में ख़्वाहिशें गर हमें मालूम हो कुछ उस की ख़्वाहिश और है अब्र मत हम-चश्म होना चश्म-ए-दरिया-बार से तेरी बारिश और है और उस की बारिश और है है तो गर्दिश चर्ख़ की भी फ़ित्ना-अंगेज़ी में ताक़ तेरी चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा की लेक गर्दिश और है बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र' क्या कहूँ तुझ से कि वो तर्ज़-ए-परस्तिश और है