तुझे दिल से उतारा ही नहीं था

By munir-anwarNovember 9, 2020
तुझे दिल से उतारा ही नहीं था
कि तेरे बिन गुज़ारा ही नहीं था
हमें भी ज़िंदगी मुश्किल लगी थी
ये आलम बस तुम्हारा ही नहीं था


पलट के आ भी सकता था वो लेकिन
उसे हम ने पुकारा ही नहीं था
तिरे लहजे में तब्दीली चे मा'नी
तिरी जानिब इशारा ही नहीं था


उसे इल्ज़ाम धरना था किसी पर
कि कोई और चारा ही नहीं था
ये सदमा यूँ भी मुश्किल है कि पहले
कभी मैं ख़ुद से हारा ही नहीं था


कटे हैं वो भी लम्हे ज़िंदगी से
जिन्हें हम ने गुज़ारा ही नहीं था
बहुत आसान हो सकती थीं राहें
हमें चलना गवारा ही नहीं था


मोहब्बत पर ये वक़्त आना था 'अनवर'
कोई सदक़ा उतारा ही नहीं था
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