तुझ से ऐ ज़ीस्त हमें जितने हसीं ख़्वाब मिले

By akhtar-ziaiJune 1, 2024
तुझ से ऐ ज़ीस्त हमें जितने हसीं ख़्वाब मिले
नक़्श-बर-आब कभी सूरत-ए-सीमाब मिले
हम ने हर मौज-ए-हवादिस को किनारा समझा
हम को हर मौज में लिपटे हुए गिर्दाब मिले


गर्दिश-ए-वक़्त ने गहना दिए कितने सूरज
सुब्ह की गोद में दम तोड़ते महताब मिले
जब भी सदियों की फ़ुतूहात को मुड़ कर देखा
ख़ूँ में लिथड़े हुए तारीख़ के अबवाब मिले


सैल-ए-ज़ुल्मात में है क़ाफ़िला-ए-मंज़िल-ए-शब
काश ऐसे में कोई नज्म-ए-उफ़ुक़-ताब मिले
अहल-ए-किरदार को देखा है सर-ए-दार अक्सर
अहल-ए-गुफ़्तार तह-ए-साया-ए-मेहराब मिले


फ़स्ल-ए-गुल आई है यारो तो ग़नीमत जानो
फूल अफ़्सुर्दा सही ज़ख़्म तो शादाब मिले
दिल के हर दाग़ से वाबस्ता है रूदाद-ए-सितम
रंज बढ़ता गया जूँ जूँ मुझे अहबाब मिले


मुझ को 'अख़्तर' न मिली नाला-ए-शब-गीर की दाद
क़र्या-ए-शौक़ के सब लोग गराँ-ख़्वाब मिले
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