तुम भी रूठी रहो ये गवारा नहीं
By aatish-muradabadiSeptember 8, 2024
तुम भी रूठी रहो ये गवारा नहीं
है ज़माने में कोई हमारा नहीं
'अक्स जिस में हो शामिल तुम्हारा नहीं
है सनम वो नज़ारा नज़ारा नहीं
टीस दिल में उठी तुम को आवाज़ दी
मैं ने अब तक किसी को पुकारा नहीं
अब भला तुम से कैसे करें इल्तिजा
जब तुम्हें हम ने दिल में उतारा नहीं
'इश्क़ में डूब कर कोई उभरा कहाँ
डूबते को किसी का सहारा नहीं
मानता हूँ कि ये दर्द-ओ-ग़म है मिरा
दोष कोई भी इस में तुम्हारा नहीं
मैं सुनाऊँ ग़ज़ल कैसे 'आतिश' भला
नाम फ़ेहरिस्त में जब हमारा नहीं
है ज़माने में कोई हमारा नहीं
'अक्स जिस में हो शामिल तुम्हारा नहीं
है सनम वो नज़ारा नज़ारा नहीं
टीस दिल में उठी तुम को आवाज़ दी
मैं ने अब तक किसी को पुकारा नहीं
अब भला तुम से कैसे करें इल्तिजा
जब तुम्हें हम ने दिल में उतारा नहीं
'इश्क़ में डूब कर कोई उभरा कहाँ
डूबते को किसी का सहारा नहीं
मानता हूँ कि ये दर्द-ओ-ग़म है मिरा
दोष कोई भी इस में तुम्हारा नहीं
मैं सुनाऊँ ग़ज़ल कैसे 'आतिश' भला
नाम फ़ेहरिस्त में जब हमारा नहीं
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