तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो

By haneef-akhgarOctober 31, 2020
तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो
फिर ख़ुद ही मुझे तर्क-ए-मोहब्बत की सज़ा दो
हिम्मत है तो फिर सारा समुंदर है तुम्हारा
साहिल पे पहुँच जाओ तो कश्ती को जला दो


इक़रार-ए-मोहब्बत है न इंकार-ए-मोहब्बत
तुम चाहते क्या हो हमें इतना तो बता दो
खुल जाए न आँखों से कहीं राज़-ए-मोहब्बत
अच्छा है कि तुम ख़ुद मुझे महफ़िल से उठा दो


सच्चाई तो ख़ुद चेहरे पे हो जाती है तहरीर
दा'वे जो करें लोग तो आईना दिखा दो
इंसान को इंसान से तकलीफ़ है 'अख़्गर'
इंसान को तज्दीद-ए-मोहब्बत की दुआ दो


73697 viewsghazalHindi