तुम्हारे रंग की भी क्या कोई ज़ंजीर मिलती है

By nomaan-shauqueFebruary 28, 2024
तुम्हारे रंग की भी क्या कोई ज़ंजीर मिलती है
नज़र चाहे जिधर जाए बस इक तस्वीर मिलती है
ये कौन अहमक़ बनाता है नई दुनिया के मंसूबे
यहाँ इंसान तो मिलते नहीं ता'मीर मिलती है


तराज़ू के ये बाज़ू जाने किस के काम आएँगे
हमें इंसाफ़ कब मिलता है बस तक़रीर मिलती है
उसी दर पर चले जाओ जहाँ सज्दे में थे कल रात
दवाएँ भी वहीं से लो जहाँ तासीर मिलती है


बहुत आगे निकल जाना नहीं ख़्वाबों की मस्ती में
कि आँखें खोलते ही पाँव में ज़ंजीर मिलती है
54233 viewsghazalHindi