उभर रही है किरन सुब्ह-ए-ज़ू-फ़िशाँ के लिए

By akhgar-panipatiMay 31, 2024
उभर रही है किरन सुब्ह-ए-ज़ू-फ़िशाँ के लिए
सँवर रही है फ़ज़ा हुस्न-ए-गुलसिताँ के लिए
मिरी फ़सुर्दा उम्मीदों को कर दिया ख़ंदाँ
ये इल्तिफ़ात-ए-नज़र इक शिकस्ता जाँ के लिए


ख़ुदा के दर पे तो सज्दा-कुनाँ है इक दुनिया
मिरी जबीं है फ़क़त तेरे आस्ताँ के लिए
तिरे हुज़ूर में आया तो खो गया ऐसा
ज़बान खुल न सकी अर्ज़-ए-दास्ताँ के लिए


उन्हें शिकस्त-ए-मोहब्बत का ख़ौफ़ क्या 'अख़्गर'
कफ़न-बदोश जो निकले हैं इम्तिहाँ के लिए
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