उड़े होश बहकी नज़र नश्शा छाया
By birj-lal-raanaFebruary 26, 2024
उड़े होश बहकी नज़र नश्शा छाया
वो आए कि जाम-ए-मय-ए-नाब आया
मोहब्बत है मुफ़्लिस की तक़्सीर शायद
इसे लाख पर्दों में 'उर्यां ही पाया
मुसीबत का एहसान भूलूँ तो क्यूँकर
मुसीबत पड़ी तो ख़ुदा याद आया
ख़लिश से है दिल में तड़प सी है जाँ में
वो आए कि जीने का अंदाज़ आया
ये है क़िस्सा-ए-ज़िंदगी का ख़ुलासा
जो पाया वो खोया जो खोया न पाया
परस्तिश जो की तो ख़ुदी की परस्तिश
झुकाया तो सर अपने आगे झुकाया
शिकस्ता हुआ दिल तो कुछ और निखरा
शहाब और भी टूट कर जगमगाया
न समझे ख़ुदी को न समझे ख़ुदा को
न जीना ही आया न मरना ही आया
कई बार फूँका जिसे बिजलियों ने
उसी शाख़ पर आशियाना बनाया
जहाँ में न हँसते बनी है न रोते
ख़ुशी रास आई न ग़म रास आया
जवानी ने जब साज़-ए-हस्ती को छेड़ा
ज़मीं गुनगुनाई फ़लक गुनगुनाया
ज़माने के दिल की सदा बन के 'रा'ना'
ज़माने को मेरे सुख़न ने जगाया
वो आए कि जाम-ए-मय-ए-नाब आया
मोहब्बत है मुफ़्लिस की तक़्सीर शायद
इसे लाख पर्दों में 'उर्यां ही पाया
मुसीबत का एहसान भूलूँ तो क्यूँकर
मुसीबत पड़ी तो ख़ुदा याद आया
ख़लिश से है दिल में तड़प सी है जाँ में
वो आए कि जीने का अंदाज़ आया
ये है क़िस्सा-ए-ज़िंदगी का ख़ुलासा
जो पाया वो खोया जो खोया न पाया
परस्तिश जो की तो ख़ुदी की परस्तिश
झुकाया तो सर अपने आगे झुकाया
शिकस्ता हुआ दिल तो कुछ और निखरा
शहाब और भी टूट कर जगमगाया
न समझे ख़ुदी को न समझे ख़ुदा को
न जीना ही आया न मरना ही आया
कई बार फूँका जिसे बिजलियों ने
उसी शाख़ पर आशियाना बनाया
जहाँ में न हँसते बनी है न रोते
ख़ुशी रास आई न ग़म रास आया
जवानी ने जब साज़-ए-हस्ती को छेड़ा
ज़मीं गुनगुनाई फ़लक गुनगुनाया
ज़माने के दिल की सदा बन के 'रा'ना'
ज़माने को मेरे सुख़न ने जगाया
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