उफ़ुक़ को सुर्ख़ किया आसमान ज़र्द किया
By abid-razaFebruary 17, 2025
उफ़ुक़ को सुर्ख़ किया आसमान ज़र्द किया
बहाए अश्क तो सूरज डुबो के सर्द किया
सिनाँ की नोक पे ला कर रखे मह-ओ-मिर्रीख़
फिर उस के बा'द सितारों को गर्द गर्द किया
जो रुख़ बदल के परी-ज़ाद ने पढ़ा मंतर
पलक झपकते में इक सब्ज़ बाग़ ज़र्द किया
तिलिस्म-ए-क़ुल्ज़ुम-ओ-अस्वद को तोड़ कर उस ने
पड़ाओ अपना सर-ए-कोह-ए-लाज-वर्द किया
बस एक जस्त ज़मीनी जिहात तोड़ गई
और इक क़दम ने उसे आसमाँ-नवर्द किया
'अजब घड़ी थी कि जमने लगा रगों में लहू
जो बे-दिली ने हमें तेग़-बे-नबर्द किया
बहाए अश्क तो सूरज डुबो के सर्द किया
सिनाँ की नोक पे ला कर रखे मह-ओ-मिर्रीख़
फिर उस के बा'द सितारों को गर्द गर्द किया
जो रुख़ बदल के परी-ज़ाद ने पढ़ा मंतर
पलक झपकते में इक सब्ज़ बाग़ ज़र्द किया
तिलिस्म-ए-क़ुल्ज़ुम-ओ-अस्वद को तोड़ कर उस ने
पड़ाओ अपना सर-ए-कोह-ए-लाज-वर्द किया
बस एक जस्त ज़मीनी जिहात तोड़ गई
और इक क़दम ने उसे आसमाँ-नवर्द किया
'अजब घड़ी थी कि जमने लगा रगों में लहू
जो बे-दिली ने हमें तेग़-बे-नबर्द किया
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