उम्मीद-वार-ए-लुत्फ़ नहीं हैं किसी से हम मायूस इस लिए भी नहीं ज़िंदगी से हम उन की जफ़ाएँ सह न सके ख़ुश-दिली से हम क्या सुल्ह कर सकेंगे ग़म-ए-ज़िंदगी से हम हैं मस्त और बे-ख़ुद-ओ-सरशार आज तक इक रोज़ क्या मिले थे किसी अजनबी से हम वो अब हमारे पहलू में बैठे हुए हैं 'दर्द' डर ये है मर न जाएँ कहीं इस ख़ुशी से हम