उन की क़िस्मत सँवारता हूँ मैं
By achyutam-yadavOctober 12, 2024
उन की क़िस्मत सँवारता हूँ मैं
एक दो लोगों का ख़ुदा हूँ मैं
तेरी यादों के पर कतर के ही
दिल के पिंजरे को खोलता हूँ मैं
फ़ैसले दिल से लेता था सारे
ज़ेहन के शहर में नया हूँ मैं
ख़ामुशी था ज़बान वालों की
बे-ज़बानों की अब सदा हूँ मैं
किस ने आवाज़ दी है पीछे से
किस की ख़ातिर रुका हुआ हूँ मैं
ग़ालिबन सोचता हूँ काफ़ी कम
कुछ ज़ियादा ही सोचता हूँ मैं
ख़ुद से आगे निकल के ऐ राही
ख़ुद को आवाज़ दे रहा हूँ मैं
बारहा करता हूँ हदें मैं पार
फिर कहीं पाँव देखता हूँ मैं
जाने कितनों की हो तुम्हीं मंज़िल
जाने कितनों का रास्ता हूँ मैं
एक दो लोगों का ख़ुदा हूँ मैं
तेरी यादों के पर कतर के ही
दिल के पिंजरे को खोलता हूँ मैं
फ़ैसले दिल से लेता था सारे
ज़ेहन के शहर में नया हूँ मैं
ख़ामुशी था ज़बान वालों की
बे-ज़बानों की अब सदा हूँ मैं
किस ने आवाज़ दी है पीछे से
किस की ख़ातिर रुका हुआ हूँ मैं
ग़ालिबन सोचता हूँ काफ़ी कम
कुछ ज़ियादा ही सोचता हूँ मैं
ख़ुद से आगे निकल के ऐ राही
ख़ुद को आवाज़ दे रहा हूँ मैं
बारहा करता हूँ हदें मैं पार
फिर कहीं पाँव देखता हूँ मैं
जाने कितनों की हो तुम्हीं मंज़िल
जाने कितनों का रास्ता हूँ मैं
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