उस का अंदाज़ भी चेहरा भी ग़ज़ल जैसा है वो पड़ोसी मिरा लगता भी ग़ज़ल जैसा है देखने वालो इसे मेरी नज़र से देखो ये मिरा चाँद सा मुन्ना भी ग़ज़ल जैसा है धर्म के नाम पे ये क़त्ल की साज़िश कुछ सोच तेरे हमसाए का बच्चा भी ग़ज़ल जैसा है हुस्न ऐसा है कि देखो तो लगे ताज-महल इस पे वो शख़्स सँवरता भी ग़ज़ल जैसा है पत-झड़ों से भी उभरती हैं बहारें 'आशिक़' रंग मौसम का बदलता भी ग़ज़ल जैसा है