उस का चेहरा है कि भूला हुआ मंज़र जैसे
By salim-saleemFebruary 28, 2024
उस का चेहरा है कि भूला हुआ मंज़र जैसे
मेरी आँखों में ये आँसू भी हैं पत्थर जैसे
एक साया मिरे क़दमों से लिपट जाता है
शाम होते ही मिरी छत से उतर कर जैसे
साहिल-ए-दिल पे पटख़ता है बहुत सर अपना
रात-भर तेरे ख़यालों का समुंदर जैसे
ये अलग बात कि देखा नहीं उस को अब तक
फिर भी रहता है मिरे साथ वो अक्सर जैसे
घंटियाँ बजती हैं अब ज़ेहन के दरवाज़े पर
मस्जिदें टूट रही हों मिरे अंदर जैसे
ज़िंदगी क़ैद हूँ मैं अपने बदन के अंदर
और बुलाता है कोई जिस्म से बाहर जैसे
मेरी आँखों में ये आँसू भी हैं पत्थर जैसे
एक साया मिरे क़दमों से लिपट जाता है
शाम होते ही मिरी छत से उतर कर जैसे
साहिल-ए-दिल पे पटख़ता है बहुत सर अपना
रात-भर तेरे ख़यालों का समुंदर जैसे
ये अलग बात कि देखा नहीं उस को अब तक
फिर भी रहता है मिरे साथ वो अक्सर जैसे
घंटियाँ बजती हैं अब ज़ेहन के दरवाज़े पर
मस्जिदें टूट रही हों मिरे अंदर जैसे
ज़िंदगी क़ैद हूँ मैं अपने बदन के अंदर
और बुलाता है कोई जिस्म से बाहर जैसे
21844 viewsghazal • Hindi