उस की चाह में अब के ये भी कमाल हुआ ख़ुद से मैं बाहर आया तो एक मिसाल हुआ दर्द की बेड़ी शाम से ही बज उठती है मैं तो उस के फ़िराक़ में और निढाल हुआ वो मेरी तारीफ़ का अब मोहताज नहीं वो चेहरा तो ख़ुद ही एक मिसाल हुआ ख़ुद ही चराग़ अब अपनी लौ से नालाँ है नक़्श ये क्या उभरा ये कैसा ज़वाल हुआ अब तो सन्नाटा भी बोलता लगता है अपने आप में ये भी एक कमाल हुआ मैं अपनी तन्हाई से शायद आजिज़ था इस आहट का वर्ना कैसे ख़याल हुआ वो भी मुझ को भुला के बहुत ख़ुश बैठा है मैं भी उस को छोड़ के 'तूर' निहाल हुआ