उसे ख़बर भी नहीं गर्द-ए-माह-ओ-साल हूँ मैं
By salim-saleemFebruary 28, 2024
उसे ख़बर भी नहीं गर्द-ए-माह-ओ-साल हूँ मैं
बदन का बोझ उठाते हुए निढाल हूँ मैं
ये मेरा ज़ख़्म कि मैं भी वुजूद रखता हूँ
ख़ुद अपने ज़ख़्म की सोज़िश का इंदिमाल हूँ मैं
गुज़र रहे हैं सभी रौंदते हुए मुझ को
तिरी गली में कोई नक़्श-ए-पाएमाल हूँ मैं
जवाब-ए-बोसा ने पेचीदा कर दिया है मगर
तिरे लबों के लिए सहल सा सवाल हूँ मैं
बदन का बोझ उठाते हुए निढाल हूँ मैं
ये मेरा ज़ख़्म कि मैं भी वुजूद रखता हूँ
ख़ुद अपने ज़ख़्म की सोज़िश का इंदिमाल हूँ मैं
गुज़र रहे हैं सभी रौंदते हुए मुझ को
तिरी गली में कोई नक़्श-ए-पाएमाल हूँ मैं
जवाब-ए-बोसा ने पेचीदा कर दिया है मगर
तिरे लबों के लिए सहल सा सवाल हूँ मैं
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