उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
By abdul-aleem-aasiOctober 6, 2022
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
मैं उस के वास्ते किस वक़्त बे-क़रार न था
कोई जहान में क्या और तरहदार न था
तिरी तरह मुझे दिल पर तो इख़्तियार न था
ख़िराम-ए-जल्वा के नक़्श-ए-क़दम थे लाला-ओ-गुल
कुछ और इस के सिवा मौसम-ए-बहार न था
ग़लत है हुक्म-ए-जहन्नम किसे हुआ होगा
कि मुझ से बढ़ के तो कोई गुनाहगार न था
लहद को खोल के देखो तो अब कफ़न भी नहीं
कोई लिबास न था जो कि मुस्तआ'र न था
तू महव-ए-गुलबन-ओ-गुलज़ार हो गया 'आसी'
तिरी नज़र में ख़याल-ए-जमाल-ए-यार न था
मैं उस के वास्ते किस वक़्त बे-क़रार न था
कोई जहान में क्या और तरहदार न था
तिरी तरह मुझे दिल पर तो इख़्तियार न था
ख़िराम-ए-जल्वा के नक़्श-ए-क़दम थे लाला-ओ-गुल
कुछ और इस के सिवा मौसम-ए-बहार न था
ग़लत है हुक्म-ए-जहन्नम किसे हुआ होगा
कि मुझ से बढ़ के तो कोई गुनाहगार न था
लहद को खोल के देखो तो अब कफ़न भी नहीं
कोई लिबास न था जो कि मुस्तआ'र न था
तू महव-ए-गुलबन-ओ-गुलज़ार हो गया 'आसी'
तिरी नज़र में ख़याल-ए-जमाल-ए-यार न था
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