उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था मैं उस के वास्ते किस वक़्त बे-क़रार न था कोई जहान में क्या और तरहदार न था तिरी तरह मुझे दिल पर तो इख़्तियार न था ख़िराम-ए-जल्वा के नक़्श-ए-क़दम थे लाला-ओ-गुल कुछ और इस के सिवा मौसम-ए-बहार न था ग़लत है हुक्म-ए-जहन्नम किसे हुआ होगा कि मुझ से बढ़ के तो कोई गुनाहगार न था लहद को खोल के देखो तो अब कफ़न भी नहीं कोई लिबास न था जो कि मुस्तआ'र न था तू महव-ए-गुलबन-ओ-गुलज़ार हो गया 'आसी' तिरी नज़र में ख़याल-ए-जमाल-ए-यार न था