वार पर वार कर रहा हूँ मैं
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
वार पर वार कर रहा हूँ मैं
कुछ ज़ियादा ही डर गया हूँ मैं
कोई मजबूर ही गुज़रता है
ऐसा वीरान रास्ता हूँ मैं
उफ़ उदासी ये मेरी आँखों की
किस क़दर झूठ बोलता हूँ मैं
ये तो मुझ पर तिरी नहीं से खुला
कितना आसान फ़ैसला हूँ मैं
यार सब उठ के जा चुके लेकिन
अपने सर से नहीं टला हूँ मैं
आँख खुलने से दफ़्न होने तक
जाने किस किस का मसअला हूँ मैं
वक़्त की गहरी खाई है नीचे
और किनारे ही पे खड़ा हूँ मैं
कुछ ज़ियादा ही डर गया हूँ मैं
कोई मजबूर ही गुज़रता है
ऐसा वीरान रास्ता हूँ मैं
उफ़ उदासी ये मेरी आँखों की
किस क़दर झूठ बोलता हूँ मैं
ये तो मुझ पर तिरी नहीं से खुला
कितना आसान फ़ैसला हूँ मैं
यार सब उठ के जा चुके लेकिन
अपने सर से नहीं टला हूँ मैं
आँख खुलने से दफ़्न होने तक
जाने किस किस का मसअला हूँ मैं
वक़्त की गहरी खाई है नीचे
और किनारे ही पे खड़ा हूँ मैं
49813 viewsghazal • Hindi