वरक़-ए-इंतिख़ाब दिल में है एक ताज़ा किताब दिल में है किस को दिखलाऊँ अपने जी का हाल रौशन इक आफ़्ताब दिल में है रौशनी है उसी के चेहरे की वो जो इक माहताब दिल में है बंद आँखों में एक आलम है किसी मंज़र का ख़्वाब दिल में है सब ही सीने में हो रहा है 'ज़हीर' दर्द की काएनात दिल में है