वफ़ूर-ए-रहमत-ए-परवरदिगार होता था
By hina-ambareenFebruary 6, 2024
वफ़ूर-ए-रहमत-ए-परवरदिगार होता था
कि सब का पहला अक़ीदा ही प्यार होता था
दरख़्त झूमते रहते दु'आ के धागों से
गली गली कोई मन्नत-गुज़ार होता था
मतब हकीम दवाई न कारगर होती
किसी की याद में ऐसा बुख़ार होता था
बस एक वा'दे पे ‘उम्रें गुज़ार दी जातीं
बिछड़ने वालों पे यूँ ए'तिबार होता था
न झूटे ख़्वाब दिखाते थे एक दूजे को
न हाथ छोड़ के कोई फ़रार होता था
जो माँ है पहले सहेली थी अपनी बेटी की
तो बाप बेटे का तब पहरे-दार होता था
कि सब का पहला अक़ीदा ही प्यार होता था
दरख़्त झूमते रहते दु'आ के धागों से
गली गली कोई मन्नत-गुज़ार होता था
मतब हकीम दवाई न कारगर होती
किसी की याद में ऐसा बुख़ार होता था
बस एक वा'दे पे ‘उम्रें गुज़ार दी जातीं
बिछड़ने वालों पे यूँ ए'तिबार होता था
न झूटे ख़्वाब दिखाते थे एक दूजे को
न हाथ छोड़ के कोई फ़रार होता था
जो माँ है पहले सहेली थी अपनी बेटी की
तो बाप बेटे का तब पहरे-दार होता था
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