वहशत के तलव्वुन में गुज़री कि गुज़ार आए
By aila-tahirMay 29, 2024
वहशत के तलव्वुन में गुज़री कि गुज़ार आए
इक अहद बुझा आए इक 'उम्र को हार आए
तुम लोग भी क्या समझो तुम लोग भी क्या जानो
किस ख़्वाब-असासे को मिट्टी में उतार आए
वो रंग जो भेजे थे उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर को
वो रंग वहीं अपनी ताबानी को वार आए
अब आबला-पाई है लम्हों की गिरानी है
ख़ुश-बाश गए थे जो वो सीना-फ़िगार आए
ग़म से थीं बुझी आँखें चेहरे पे तग़य्युर था
इक शख़्स को क्या देखा बे-अंत निखार आए
आवाज़ का क्या होगा ये 'इल्म था पहले से
बस ज़िद में ख़मोशी की हम उन को पुकार आए
इक अहद बुझा आए इक 'उम्र को हार आए
तुम लोग भी क्या समझो तुम लोग भी क्या जानो
किस ख़्वाब-असासे को मिट्टी में उतार आए
वो रंग जो भेजे थे उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर को
वो रंग वहीं अपनी ताबानी को वार आए
अब आबला-पाई है लम्हों की गिरानी है
ख़ुश-बाश गए थे जो वो सीना-फ़िगार आए
ग़म से थीं बुझी आँखें चेहरे पे तग़य्युर था
इक शख़्स को क्या देखा बे-अंत निखार आए
आवाज़ का क्या होगा ये 'इल्म था पहले से
बस ज़िद में ख़मोशी की हम उन को पुकार आए
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