वस्ल भरपूर रहा हिज्र भी भरपूर बना

By aarif-nazeerAugust 7, 2024
वस्ल भरपूर रहा हिज्र भी भरपूर बना
ज़ख़्म नाख़ुन से खुरचते हुए नासूर बना
उस ने इक 'उम्र मिरे साथ अज़िय्यत झेली
अब के साए को मिरे जिस्म से कुछ दूर बना


आँख बे-नूर सही कान तो सुन सकते हैं
ऐसा कुछ बोल मिरी आँख को पुर-नूर बना
मेरे लहजे को चुरा कर हुआ नामी कोई
मेरे अश'आर चुरा कर कोई मशहूर बना


मेरी सच्चाई बयाँ कर मिरे अश'आर के साथ
मेरी तस्वीर बना और ब-दस्तूर बना
मैं तो शा'इर था मगर पेट की ख़ातिर 'आरिफ़'
बार-ए-ग़म सह न सका बंदा-ए-मज़दूर बना


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