वो बज़्म कहाँ और ये दरयूज़ा-गरी
By aadil-aseer-dehlviJanuary 1, 2025
वो बज़्म कहाँ और ये दरयूज़ा-गरी
ले जाएगी मुझ को मिरी आशुफ़्ता-सरी
दीवाने ने तावील कोई पेश न की
होने को तो इल्ज़ाम से हो जाता बरी
इक देव ने क़िस्से में डराया था मुझे
फिर रात को सपने में चली आई परी
पत्थर को भी देखा तो चमक फूट पड़ी
सीखी है कहाँ तू ने ये आईना-गरी
ऐ ख़ल्वती-ए-हुस्न कभी पर्दा उठा
ऐ 'इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ कभी पर्दा-दरी
बे-ताब है दुनिया मिरे नग़्मों के लिए
सुनता नहीं फ़रियाद यहाँ तू ही मिरी
ले जाएगी मुझ को मिरी आशुफ़्ता-सरी
दीवाने ने तावील कोई पेश न की
होने को तो इल्ज़ाम से हो जाता बरी
इक देव ने क़िस्से में डराया था मुझे
फिर रात को सपने में चली आई परी
पत्थर को भी देखा तो चमक फूट पड़ी
सीखी है कहाँ तू ने ये आईना-गरी
ऐ ख़ल्वती-ए-हुस्न कभी पर्दा उठा
ऐ 'इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ कभी पर्दा-दरी
बे-ताब है दुनिया मिरे नग़्मों के लिए
सुनता नहीं फ़रियाद यहाँ तू ही मिरी
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